सब्जी उत्पादन , बागवानी और फूलों की खेती को मिले जिला योजना में प्राथमिकता
(Report - uttarakhandhindisamachar.com)
यू - टनल , स्टेगिन जैसी आधुनिक पद्धतियां अपनाने से हरे पेड़ों पर रोकी जा सकती है कुल्हाड़ी की मार ।
चम्पावत ( Champawat ) - मॉडल जिले में उद्यान के क्षेत्र में बढ़ते कदमों को देखते हुए अतीत के अनुभव बताते हैं कि यदि किसानों को वास्तविक लाभ पहुंचाने की दिशा में सही कदम उठाएं जाए तो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल सकती है । जिले में ही आलू बीज , फल पौध तैयार कर बाहरी जिलों की निर्भरता पूरी तरह समाप्त की जानी चाहिए । जिले की आवोहवा ऐसी है , जहां की भौगोलिक स्थिति में पहाड़ मैदान व गर्म घाटियां भी है । पालीहाउस खेती का विस्तार कर इसमें ग्रीन नेट , सेट नेट हाउस का भी आवरण मिलना चाहिए । बाहरी जिलों से माल्टा के नाम पर जामिर मिलने से ठगे किसानों के विश्वास को बहाल करने की जरूरत है । मौनपालन को उद्यान विभाग द्वारा 3 दिन मात्र का प्रशिक्षण देकर इस कार्यक्रम को हल्के रूप में लिया है । जरूरत इस बात की है कि , ज्योलीकोट की तर्ज पर जिले में अपना प्रशिक्षण केंद्र होना चाहिए । जब हम उद्यान व बेमौसमी सब्जियों , फूलों की खेती की ओर आगे बढ़ रहे हैं तो इसमें मौनपालन सोने में सुहागा का काम तो करेगा ही , इससे 30 फ़ीसदी उत्पादन बढ़ाने के साथ उत्पाद की गुणवत्ता में भी निखार आएगा । मौनपालन के प्रशिक्षण केंद्र के लिए बाराकोट के विकास धाम से अच्छी दूसरी जगह नहीं हो सकती । किसानों को समय से उन्नत असली बीज देने की भी आवश्यकता है । बेल वाली सब्जियां के लिए यू शेप टनल स्टेगिन उपलब्ध कराने से हरे पेड़ों पर चलने वाली कुल्हाड़ी की मार को रोका जा सकता है । इसके अलावा एंटी हेलनेट के साथ टपक सिंचाई सुविधा का भी विस्तार किया जाना समय की आवश्यकता बन गया है । उद्यान विभाग की खतेडा स्थित नर्सरी के पुराने भवनों की मरम्मत कर उसको किसानों के प्रशिक्षण में लिया जा सकता है । जिले में कोल्ड स्टोरेज तो बनाए गए हैं , लेकिन तकनीकी लोगों के अभाव के कारण वह वीरान पड़े हैं । लोहाघाट व खेतीखान जैसे स्थानों में कोल्ड स्टोरेज नहीं है । यही नहीं फल सब्जियों का आज क्षेत्र में जहां उत्पादन बढ़ता जा रहा है , वहीं मंडी के अभाव में किसान हाड़ तोड़ मेहनत करने के बाद पानी के मोल अपने उत्पादों को बेचने के लिए मजबूर है । जिले में माल्टा का उत्पादन इसका जीता जागता उदाहरण है । इस प्रकार के कार्यक्रमों को जिला योजना में सर्वोच्च प्राथमिकता मिलनी चाहिए ।कृषि व उद्यान कर्मियों की संस्तुति पर ही बनाई जाए लघु सिंचाई योजना -
यदि लघु सिंचाई विभाग योजना लागू करने के लिए ठेकेदारों से प्रस्ताव लेने के बजाय कृषि व उद्यान विभाग के लोगों के माध्यम से किसानों को सिंचाई सुविधा देने लगे तो इससे कृषि बागवानी फलीभूत होगी ही , मत्स्य पालन को भी काफी बढ़ावा मिलेगा ।
फोटो : उच्च शिक्षा प्राप्त हेमा उपाध्याय खेत से बदल रही हैं अपनी तकदीर ।