जब यहाँ होती थी नरबलि
(Report - uttarakhandhindisamachar.com)
रक्षाबंधन पर आस्था का हुजूम उमड़ता है यहाँ
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ख़बर - संवाद सहयोगी चम्पावत
उत्तराखंड ( Uttarakhand ) - प्रदेश में एक ऐसा मंदिर है जहाँ पूर्व में नरबलि का प्रावधान था । आज से सदियों पहले माता के मंदिर में प्रतिवर्ष नरबलि दी जाती थी । जी हाँ हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड के चम्पावत जिले की । चम्पावत के देवीधुरा कस्बे में स्थित माता वाराही का ये मंदिर पूरे देश में अपनी अलग पहचान के लिए प्रसिद्ध है ।
बताया जाता है यहाँ चार खाम यानी चार गुटों के लोगों द्वारा प्रतिवर्ष माता के गणों को प्रसन्न करने के लिए नरबलि दी जाती थी । इस प्रथा में हर परिवार की बारी आती थी ।
लेकिन एक समय ऐसा आया , जिस परिवार की बलि की बारी आई उस परिवार में वंश को आगे बचाने वाला सिर्फ एक बालक था । इसीलिए वंश उजड़ता देख उस बालक की दादी ने माँ वाराही की आराधना की थी औऱ माँ ने बुजुर्ग महिला को बालरूप में दर्शन देकर ताम्र दण्डिका प्रदान की औऱ खाम के मुखिया से मुलाकात करने को कहा । जिसके बाद चारों खामों के लोगों द्वारा नरबलि को बंद कर दिया गया औऱ उसके बदले बग्वाल ( पत्थर युद्ध ) की परंपरा चलन में लाई गई ।
यहाँ आज भी रक्षाबंधन के दिन पत्थर युद्ध में एक मनुष्य के शरीर के बराबर रक्त निकलता है । जिसे देखने यहाँ देशभर से लोग उमड़ते हैं । यहाँ के लोगों की माता पर आस्था औऱ विश्वास देखते ही बनता है । यहाँ किशोरावस्था से लेकर 90 वर्ष तक के लोग इस पत्थर युद्ध में भाग लेते हैं ।
लेकिन आज बदलते समय में बग्वाल के अवसर पर रक्त दान शिविर का भी आयोजन किया जाता है । अगर आप भी उत्तराखंड की इस अनूठी परंपरा के साक्षी बनना चाहते हैं तो इस रक्षाबंधन आइए उत्तराखंड के माँ वाराही धाम देवीधुरा ।