कैसे बचेंगे उत्तराखंड के जंगल ?
(Report - uttarakhandhindisamachar.com)
उत्तराखंड में जंगल जल रहे हैं औऱ कई मौतें भी हो रही हैं । उत्तराखंड में अब तक आग लगाने वाले करीब साठ व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया है , औऱ विभाग ने कई अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है । कुमाऊँ में जंगलों में आग लगने का कारण क्या है ?
1 - नेपाल की सीमा से लगे चंपावत और पिथौरागढ़ जिलों में गर्मी के कारण बढ़ी शुष्कता को उत्तराखंड में जंगल की आग का प्रमुख कारण बताया गया है । इसके साथ - साथ खेतों में पराली , कूड़ा - करकट जलाने के समय लापरवाही बरतने से भी आग जंगलों तक पहुंची है ।जंगलों में औऱ सड़क किनारे जलती बीड़ी - सिगरेट छोड़ने से भी जंगलों में आग लग रही है ।
2.उत्तराखंड में जंगलों में आग की समस्या आमतौर पर फरवरी और जून के बीच होती है जब मौसम शुष्क और गर्म होता है । ज्यादातर घटनाएं बड़ी तब हो पाती हैं जब जंगल में मौजूद सूखी पत्तियों , चीड़ का पिरूल और अन्य ज्वलनशील पदार्थों से आग का संपर्क होता है , जो आग में घी का काम करते हैं । जंगल की आग को कैसे रोकें ?
सामुदायिक भागीदारी : राज्यों के वन विभागों ने आसपास के जंगलों वाले गांवों में संयुक्त वन प्रबंधन समितियों ( जेएफएमसी ) का गठन किया है । जेएफएमसी की मदद से जंगल की आग के संबंध में जागरूकता कार्यक्रम भी आयोजित किए जा रहे हैं ।
वन विभाग के अनुसार , जंगल की आग को फैलने से रोकने के लिए दो प्रकार की अग्नि रेखाएँ हैं । कच्ची या ढकी हुई अग्नि रेखाएँ और पक्की या खुली अग्नि रेखाएँ । कच्ची अग्नि रेखाओं में झाड़ियों को हटा दिया जाता है जबकि पेड़ों को बरकरार रखा जाता है । पक्की अग्नि रेखाएँ एक जंगल/कम्पार्टमेंट/ब्लॉक को दूसरे से अलग करने वाले स्पष्ट कटे हुए क्षेत्र हैं । पुराने आरक्षित वनों में , कंपार्टमेंट की सीमा को अग्नि रेखाओं की स्पष्ट रूप से काटी गई पट्टी के रूप में भी सीमांकित किया गया था । ऐसी कृत्रिम अग्नि रेखाओं के अलावा , जंगल की सड़कें , रास्ते , प्राकृतिक जलधाराएँ आदि भी बढ़ती जंगल की आग के लिए अग्नि रेखाओं के रूप में कार्य करती हैं ।लीफ ब्लोअर का उपयोग
बढ़ती आग से कुछ दूरी पर एक पट्टी को साफ करके आग पर काबू पाने के लिए लीफ ब्लोअर का उपयोग किया जा रहा है । कूड़े / ईंधन सामग्री की अनुपस्थिति के कारण आगे बढ़ती हुई आग इस साफ़ पट्टी तक पहुँचने पर बुझ जाती है ।