क्या विश्व प्रसिद्ध बग्वाल को बंद करने की बन रही है योजना ?
(Report - uttarakhandhindisamachar.com)
■ सुगबुगाहट होते ही लोगों ने व्यक्त की नाराजगी
कुमाऊं - उत्तर भारत के विश्व प्रसिद्ध बग्वाल के लिए मशहूर माँ वाराही धाम देवीधुरा को ट्रस्ट बनाने की तैयारी चल रही है । इस सबके बीच ट्रस्ट के अध्यक्ष व अन्य पदाधिकारियों का चयन भी लगभग सम्पन्न होना बताया जा रहा है । लेकिन हाल ही में बग्वाल को बंद करने की बात होने लगी है । इस बात के उठते ही तमाम लोगों ने इसका विरोध किया है । माँ वाराही शक्तिपीठ , देवीधुरा नाम से संचालित हो रहे व्हाट्सएप्प ग्रुप में दिए गए इस सुझाव को लोगों ने नकारते हुए सोशल मीडिया प्लेटफार्म व्हाट्सएप्प औऱ फेसबुक पर उसका स्क्रीनशॉट साझा करते हुए इसका विरोध किया है । व्हाट्सएप्प ग्रुप पर भेजे गए सुझाव में ये जब कहा गया कि मैं समझता हूँ कि बग्वाल की जगह डोला यात्रा को अधिक प्रचारित किया जाय । बग्वाल थोड़ा सामयिक नहीं लगता । डोला अन्य राज्यों में भी भक्ति जगाता है , औऱ लोकप्रियता लाएगा । इस सुझाव के बाद इसका सोसल मीडिया के व्हाट्सएप्प औऱ फेसबुक प्लेटफॉर्म पर लोगों ने इसे साफ नकार दिया है । इतना ही नहीं इस सुझाव के विरोध में कई सवाल भी उठाए हैं ।
क्या बग्वाल लोकप्रियता नहीं लाती ?
क्या बग्वाल भक्ति नहीं जगाती है?
लोगों का साफ कहना है कि , बग्वाल माँ वाराही का एक ऐसा आशीर्वाद है जिसके कारण आज धाम विश्व प्रसिद्ध है । लोगों का कहना है , माँ वाराही पर अटूट विश्वास रखकर बीच मैदान पत्थरों के बीच बग्वाल खेलना सबसे बड़ी भक्ति है । इस विषय में हमने कई जानकारों से बात की तो उनका सीधा मानना था कि अगर डोले यात्रा से लोकप्रियता आती तो देवीधुरा में माँ का डोला देखने अधिक लोग आते जबकि बग्वाल देखने वाले भक्तों की भीड़ अधिक रहती है ।
उत्तराखंड हिंदी समाचार ने 2 खाम प्रमुखों से बात की-
जब उत्तराखंड हिंदी समाचार ने माँ वाराही धाम के 4 खाम प्रमुखों में से दो खाम के मुखियाओं से बात की तो एक खाम के मुखिया ने कहा - बग्वाल को कोई नहीं रोक सकता है । ये सदियों से चली आ रही एक धार्मिक परंपरा है औऱ अनवरत चलती रहेगी । इसे अंग्रेजों ने रोकने की कोशिस की लेकिन वो नाकाम रहे , कोरोना महामारी के दौर में भी इस परंपरा का निर्वहन किया गया । हाईकोर्ट ने भी इसे रोकने का प्रयास किया लेकिन कुछ बदलाव के बाद इसका आयोजन हुआ , कोरोना काल में शासन / प्रशासन ने इसे सांकेतिक रूप में आयोजित करने के निर्देश दिए थे । इसी सवाल के जवाब में दूसरे खाम के मुखिया ने नाम न बताते की शर्त में कहा कि , अगर बग्वाल का आयोजन ही नहीं होगा तो बग्वाली वीरों की रगों में दौड़ते रक्त संचार को जैसे नियंत्रित किया जाएगा । उनने कहा - अगर बग्वाल का आयोजन ही नहीं होगा तो पूरे देश से श्रद्धालुओं का आना बहुत कम हो जाएगा जिसका खामियाजा पूरे क्षेत्र को उठाना पड़ेगा । इतना ही नहीं खाम प्रमुख ने भी कहा कि - माँ वाराही धाम की समिति का रजिस्ट्रेशन कराने के बजाय ट्रस्ट बनाना कुछ लोगों की हाथ में बागडोर सौंपने जैसा होगा । उनने ये भी कहा कि - मैं सिर्फ नाम का खाम प्रमुख हूँ , मुझे वो सम्मान नहीं मिलता है जो मिलना चाहिए । हम सिर्फ पूजा औऱ बग्वाल तक खाम प्रमुख हैं , उसके बाद न हमारी पूछ है और ना ही हमारे सुझाव मान्य हैं ।
मन्दिर से जुड़े विशेष व्यक्ति ने ये कहा - मंदिर से जुड़े एक विशेष व्यक्ति ने कहा - ट्रस्ट बनाना वैसा ही है जैसा अपने हाथ काटकर किसी और को दे देना । उनने ये भी कहा कि बग्वाल को बंद करने का सवाल ही पैदा नहीं होता है । अगर ये सवाल मन में आता भी है तो समझ लीजिए कि हम पतन की ओर अग्रसर हैं । पीढ़ियों से चली आ रही परंपरा को कैसे बंद किया जा सकता जा सकता है । अगर हम अपनी परंपरा को बंद करने की बात करते हैं तो उसका सीधा अर्थ उस आदिशक्ति के ख़िलाफ़ जाना होगा जिसकी छत्रछाया में हमारा जीवन सुरक्षित है । एक सवाल का जवाब पाते ही हमने तुरंत दूसरा सवाल दागा कि - अगर आप इससे संतुष्ट नहीं हैं तो अपनी राय क्यों नहीं रखते । इसके जवाब में उन्होंने कहा - मैं बोलूंगा औऱ समय आने पर खुलकर बोलूंगा । अब बड़ा सवाल तक ये है कि यहाँ के मुख्य लोग खुलकर बात क्यों नहीं कर रहे हैं ?
बग्वाली वीरों से हुई वार्ता तो क्या कहने लगे-
बग्वाली वीरों ने कहा - बग्वाल हमारी आत्मा है , बग्वाल हमारी आस्था है , बग्वाल हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है औऱ इसे हमसे छीनने का असफल प्रयास कोई नहीं कर सकता है । जिन्हें हमारी परंपरा , आस्था औऱ इतिहास का ज्ञान ही नहीं है , वो लोग ऐसी बातें करेंगे तो उपहास के भागी बनेंगे ।
सवाल का जवाब जानना चाहा तो नहीं उठा फ़ोन-
इस सवाल का जवाब पाने के लिए हमने उसी नम्बर पर सम्पर्क किया जिस नम्बर से बग्वाल बन्द करने का सुझाव व्हाट्सएप्प ग्रुप पर दिया गया था तो 2 बार कॉल करने के बाद भी फोन नहीं उठा ।