19 अगस्त को आयोजित होगी विश्व प्रसिद्ध बग्वाल
(Report - uttarakhandhindisamachar.com)
बाराही धाम में 16 से 26 अगस्त तक होगा ऐतिहासिक बग्वाल मेला
चार खाम , सात थोकों एवं व्यापारियों व जनप्रतिनिधियों की मौजूदगी में मेले की तिथियों की घोषणा
कुमाऊं - के मां वाराही धाम देवीधुरा में परमाणु युग में पाषाण युद्ध के लिए विख्यात ऐतिहासिक पौराणिक एवं धार्मिक मेला , इस वर्ष 16 अगस्त से शुरू होगा । जो जन्माष्टमी यानी 26 अगस्त तक चलेगा । मेले का मुख्य आकर्षण बग्वाल 19 अगस्त को आयोजित होगी जबकि मां बज्र वाराही की भव्य शोभायात्रा 20 अगस्त को निकलेगी । यह निर्णय वाराही मंदिर कमेटी के अध्यक्ष मोहन सिंह बिष्ट की अध्यक्षता एवं पीठाचार्य आचार्य कीर्ति शास्त्री एवं विक्रम कठायत के संचालन में चार खाम सात थोकों के प्रतिनिधियों , व्यापारियों की मौजूदगी में लिया गया। बैठक में वक्ताओं का कहना था कि उत्तराखंड में छठे धाम के रूप में विकसित हो रहे वाराही धाम में होने वाली परंपरागत बग्वाल का आकर्षण देश-विदेश के लोगों में लगातार बढ़ता जा रहा है । जिसे देखते हुए चारों खामों के बग्वाली वीरों के बीच आपसी समन्वयन एवं अनुशासन का होना बहुत जरूरी है । चार खाम सात थोकों के लोगों को यह प्रयास करना होगा कि हर खाम के लोग अनुशासित व मर्यादित होकर पूर्वजों की इस विरासत बग्वाल को एक महापर्व के रूप में ऐसे मनायें , जिससे बाहर से आने वाले लोग बग्वाल की यादों को अपने साथ ले जाएं । लगभग तीन घंटे तक चली बैठक में तय किया गया कि बग्वाल की गरिमा बनाए रखने एवं सभी खामाें के युवा वीरों का जोश के साथ होश बनाए रखने के लिए बग्वाल से दो दिन पूर्व यानी 17 अगस्त को सभी खामों के युवाओं की बैठक आयोजित कर उन्हें आवश्यक दिशा निर्देश व आचार संहिता का पालन करने के लिए प्रतिबद्ध किया जाएगा । सात किलोमीटर का मेला क्षेत्र होगा जिसे सीसीटीवी कैमरे से आच्छादित किया जाएगा । बैठक में यह भी तय किया गया की खोलीखांड़ दुबाचौड़ के मैदान में खामों के प्रवेश करने के बाद से बग्वाल समाप्ति तक मंच से कोई भी राजनीतिक चर्चाएं न होकर केवल लोगों को वाराही धाम के धार्मिक , ऐतिहासिक महत्व के साथ बग्वाल की परंपराओं की जानकारी दी जाएगी । बग्वाल अपराह्न 2:00 बजे से 3:30 बजे के बीच होगी । बैठक में सभी खामों के देवीधूरा आने वाले मार्ग को समय से ठीक करने , देवीधुरा बाजार को आकर्षक बनाने तथा नालियों की सफाई पर विशेष जोर दिया गया ।
जानिए क्या होती है बग्वाल-
बग्वाल सदियों से चली आ रही एक ऐसी परंपरा है जो परमाणु युग में भी पत्थर युद्ध की बात करती है । जी हाँ खोलीखांड के मैदान में रक्षाबंधन के अवसर पर माँ वाराही को प्रसन्न करने औऱ विश्व कल्याण की भावना के साथ लोग एक दूसरे पर पत्थर फ़ेंकते हैं । औऱ ये पत्थर युद्ध करीब 10 से 30 मिनट तक चल सकता है , जब समूह में लोग एक दूसरे पर काफी देर तक पत्थर फ़ेंकतें रहते हैं तो उसे बग्वाल कहा जाता है । इस युद्ध में दर्जनों लोग चोटिल होते हैं लेकिन यहाँ आज तक किसी की जान नहीं गई । ये पत्थर युद्ध चार खाम औऱ सात थोक के लोग आयोजित करते हैं जिसमें माँ वाराही पर आस्था रखने वाले अन्य लोग भी शामिल होते हैं । देवीधुरा के खोलीखांड डुबाचौड़ के इस पावन धरा पर आपको 15 साल से 90 साल तक के लोग बग्वाल खेलते यानी एक दूसरे पर पत्थर मारते दिखाई देंगे । परमाणु युग में भी पत्थर युद्ध की बात करने वाले मां वाराही के ये भक्त बग्वाल के समय कोई साधारण मनुष्य नहीं होते बल्कि इनमें इतनी ऊर्जा का संचार होने लगता है कि पत्थर की चोट का इन्हें आभास नहीं होता है । मां की महिमा , भक्तों की आस्था , बग्वाल , बग्वाली वीर , खोलीखांड दुबाचौड़ , चार खाम औऱ सात थोक को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है बल्कि इन्हें जानने के लिए इस बग्वाल यानी 19 अगस्त रक्षाबंधन के अवसर पर आपको कुमाऊं के देवीधुरा जाना ही होगा ।
फोटो - बग्वाल का एक दृश्य , जिसमें फारों ( रिंगाल से बनी विशालकाय ढाल जिसका वजन करीब 10 से 30 किलो के बीच होता है ) की आड़ से पत्थर युद्ध लड़ा जा रहा है ।