पहले सूखा और अब भारी बारिश ने तोड़ दी है किसानों की कमर
(Report - uttarakhandhindisamachar.com)
● भारतीय किसान यूनियन ने किसानों को मुआवजा देने के लिए मुख्यमंत्री से लगाई गुहार
कुमाऊं - पहले सूखा और उसके बाद लगातार हुई बारिश ने किसानों को कहीं का नहीं रख दिया है । सही मायनों में देखा जाए तो किसानों के पास आजीविका चलाने के लिए खेत ही एकमात्र माध्यम हुआ करता है । जिसके जरिए वह अपने परिवार का पालन पोषण , बच्चों की पढ़ाई , शादी विवाह आदि सभी पारिवारिक संस्कार इसी के बल पर करते आ रहे हैं । ऐसे में जब मौसम ही दगा दे जाए और किसान की हाड़ तोड़ मेहनत बर्बाद हो जाए तो किसान बिचारे हाथ मलकर अपनी किस्मत को कोसने लगते हैं । कुमाऊं भर में बैमौसमी सब्जियों का व्यापक उत्पादन होता है । आग उगलने वाली गर्मियों में पानी ढो - ढो कर किसानों ने अपनी सब्जी के पौधों को जिंदा रखा हुआ था । उसके बाद हुई भारी वर्षा से पौधे टूटने के साथ उनमें गलन पैदा हो गई है । भारतीय किसान यूनियन चम्पावत के जिलाध्यक्ष एवं कुमाऊं के प्रमुख सब्जी उत्पादक नवीन करायत के अनुसार दुर्भाग्य किसानों का पीछा नहीं छोड़ रहा है । बैमोसमी सब्जियों , आलू आदि का कारोबार चौपट होने से किसानों की भविष्य की आस समाप्त हो गई है । उन्होंने मुख्यमंत्री व जिला प्रशासन को पत्र लिखकर किसानों को मुआवजा देने की मांग की है। किसान करायत का कहना है कि , यहां के किसानों का एकमात्र जरिया ही खेती है जब वही बर्बाद हो गई तो उनकी मन: स्थिति को स्वयं समझा जा सकता है ।
क्या कहते हैं कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक -
कृषि विज्ञान केंद्र लोहाघाट की उद्यान वैज्ञानिक डॉ रजनी पंत का कहना है कि , पहले तापमान 33 - 34 डिग्री तक पहुंचाने के बाद इसका 19 डिग्री तक लुढ़कना यानी मौसमी मार को सब्जी पौध नहीं झेल पाए । ऊपर से हुई भारी वर्षा ने पौधों में गलन पैदा होने से उनमें झुलसा रोग पैदा हो गया है । जिसके लिए उन्होंने एक लीटर पानी में कार्बनडाजौल के 2 एमएल मिलाकर सब्जी पौधों की जड़ों में स्प्रे करने का सुझाव दिया है । उन्होंने पौधों को जमीन से ऊपर उठकर रखने आदि सुझाव देते हुए कहा कि ऐसा प्रयास किया जाना चाहिए कि जिससे पौधों में पानी न रुकने पाए । डॉ पंत का कहना है सब्जी उत्पादकों को पूरी तरह संरक्षित खेती की ओर आगे बढ़ना चाहिए ।
फोटो : ऐसे शिमला मिर्च कि पौधों को रोगों ने जकड़ दिया है ।