जब अपना सिर काटकर दिखाया था राष्ट्र के प्रति समर्पण
(Report - uttarakhandhindisamachar.com)
एक क्षत्राणी ऐसी भी जिसने अपना सिर खुद काट लिया
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रिपोर्ट - Uttarakhandhindisamachar.com
भारतीय इतिहास में क्षत्रीय राजाओं की मुख्य भूमिका रही है जो आपने सुनी भी होगी औऱ पढ़ी भी होगी ।
लेकिन क्या आप जानते हैं भारतीय इतिहास में क्षत्राणियों की भी अहम भूमिका रही है ।
आज हम आपको लेकर चलते हैं इतिहास की ऐसी कहानी की ओर जो आपके रोंगटे खड़े कर देगी औऱ आपके शरीर में रक्त प्रवाह की गति को बढ़ा देगी ।
बात सन 1653 की है , जब हाड़ा के चौहान राजपूत की बेटी राजकुमारी हाड़ी का विवाह मेवाड़ के सरदार रतन सिंह से हुआ ।
किवंदंतियों के अनुसार विवाह के मात्र एक सप्ताह बीतने के बाद रतन सिंह को मेवाड़ के राज सिंह प्रथम ( 1653 - 1680 ) की ओर से मुगल गवर्नर अजमेर के विरुद्ध विद्रोह के लिए जाना पड़ा । विवाह को कुछ ही दिन हुए थे तो मन में हिचकिचाहट हुई लेकिन राजपूतों की परंपरा को ध्यान में रखते हुए सरदार रतन सिंह रणक्षेत्र जाने के लिए तैयार हुए औऱ अपनी पत्नी हाड़ी रानी से कुछ ऐसी निशानी मांगी जिसे लेकर वो रणक्षेत्र में जा सकें ।
हाड़ी रानी को लगा कि वो रतन सिंह की जिम्मेदारी हैं शायद इसीलिए उन्हें युद्ध में जाने के लिए असमंजस की स्थिति पैदा हो रही है जो उनके राजपूत धर्म के पालन में बाधा बन रही है तो रानी ने अपना सिर एक प्लेट पर काटकर दे दिया ।
थाल में रखकर , कपड़े से ढककर जब सेवक सिर को लेकर उपस्थित हुआ , तो रतन सिंह को बड़ी ग्लानि औऱ बेहद दुःख हुआ । उन्होने रानी हाड़ी के कटे सिर को उसके ही बालों से अपने गले में बांध लिया और खूब लड़े । जब विद्रोह समाप्त हो गया तब रतन सिंह की जीवित रहने की इच्छा समाप्त हो चुकी थी । उन्होने अपना भी सिर काटकर अपनी जीवनलीला समाप्त कर दी ।
भारत के इतिहास में राष्ट्रहित के लिए राजपूतों व उनकी रानियों के अदम्य साहस औऱ समर्पण का आजाद भारत में रहने वाले लोग सदैव ऋणी रहेंगे ।