पूर्णागिरि धाम को ट्रस्ट बनाना बेहद जरूरी
(Report - uttarakhandhindisamachar.com)
पूर्णागिरी धाम को ट्रस्ट बनाने की दिशा में भी की जाय पहल
● मेले की व्यवस्थाएं सुनिश्चित करने के लिए गठित किया जाए पूर्णागिरी विकास प्राधिकरण
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रिपोर्ट - Uttarakhandhindisamachar.com
चम्पावत ( Champawat ) - उत्तर भारत के प्रमुख तीर्थ स्थल पूर्णागिरी धाम के विकास के लिए जिस दूरगामी सोच के साथ योजनाएं तैयार की जा रही हैं , इसी के साथ धाम के प्रबंधन की भी सोच पैदा की जाने की आवश्कता है । पहले पूर्णागिरी मेले की व्यवस्था पिथौरागढ़ व नैनीताल जिला प्रशासन द्वारा की जाती थी । 15 सितंबर 1997 को चंपावत नाम से नया जिला बनने एवं टनकपुर बनबसा क्षेत्र को इसमें शामिल किए जाने के बाद इस धाम के व्यापक प्रबंधन के लिए यहां वैष्णो देवी की तर्ज पर ट्रस्ट बनाने की आवश्यकता महसूस की गई ताकि धाम का समग्र विकास होने के साथ यहां आने वाले तीर्थ यात्रियों को बेहतर सुविधाएं दी जा सके । इस कार्य के लिए जिले के पहले डीएम नवीन चंद्र शर्मा ने बकायदा जिले के एक पीसीएस अधिकारी सीबी त्रिपाठी को ट्रस्ट के अध्यन के लिए वैष्णो देवी भेजा । वैष्णो देवी जाकर 15 दिन अध्ययन करने के बाद उन्होंने जिला प्रशासन को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी । पूर्णागिरी मंदिर के पुजारियों के विरोध के चलते इस प्रकरण को खामोश बस्ते में डाल दिया गया । आज जबकि सीएम धामी चंपावत को मॉडल जिला बनाने के क्रम में यहां पर्यटन , तीर्थाटन , इको टूरिज्म को बढ़ावा देने के साथ पूर्णागिरी धाम में तीन माह के स्थान पर वर्षभर मेला आयोजित करने , यात्रियों को बेहतर सुविधाएं देने हेतु स्थाई परिसंपत्तियों का निर्माण प्रस्तावित करने के अलावा धाम की यात्रा को और सुगम बनाया जा रहा है । जिसके लिए एक बार फिर पूर्णागिरी ट्रस्ट के लिए प्रयास शुरू किए जाने हेतु लोग जोर देने लगे हैं । लोगों का कहना है की जब वैष्णो देवी का ट्रस्ट बनाते समय वहां डोगराओं के विरोध को आसानी से शांत कर उस धाम की ख्याति देश विदेश में हो गई है , ऐसी स्थिति में यहां के पुजारियों के हितों को सुरक्षित रखते हुए यहां भी दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ ट्रस्ट बनाने के लिए पहल पुनः शुरू की जा सकती है ।
ट्रस्ट बनाने के प्रयास जारी रखते हुए तब तक यहां पूर्णागिरी विकास प्राधिकरण की स्थापना की जाए जिसके लिए जगपुड़ा पुल से पूर्णागिरी मंदिर तक लगभग 35 किलो मीटर क्षेत्र को नोटिफाइड कर इसे मेला क्षेत्र घोषित किया जाए । इसमें ककराली गेट से आगे बन क्षेत्र में ऐसे स्थानों में रैनबसेरों का निर्माण करने के लिए धार्मिक संस्थाओं या पूजीपतियों को आमंत्रित किया जाए । यह कार्य को ऐसे किया जाए की जिससे यात्री जंगल में रहने का आनंद उठाने के साथ अपनी तीर्थ यात्रा को यादगार बना सके । इस वन क्षेत्र का स्वामित्व पूर्ववत वन विभाग का ही बना रहे । प्राधिकरण द्वारा ही सारी व्यवस्थाएं सुनिश्चित करने के लिए किसी पीसीएस अधिकारी को इसका मुखिया बनाया जाए जिसका काम ही वर्षभर मेले की व्यवस्थाएं करने के साथ इसमें नए आयाम जोड़ने का प्रयास हो । हालांकि वर्तमान में जिला पंचायत मेले का प्रबंध करती है लेकिन मेले में यात्रियों को किस प्रकार बेहतर सुविधाएं दी जाए इसके लिए वहां सोच का अभाव रहता है । पूर्णागिरी धाम मैं वर्षभर मेला लगने से यहां आने वाले तीर्थ यात्रियों का रुख जिले के सुखीडांग , चंपावत , गुरु गोरखनाथ , लोहाघाट , श्री रीठासाहिब औऱ देवीधुरा की ओर किया जा सकता है । यदि श्रावण मास में चंपावत में भगवान शिव की सप्तकोसी यात्रा शुरू की जाए तो इससे धार्मिक पर्यटन को और बढ़ावा मिलेगा ।