10 मिनट चली लेकिन कई सवाल छोड़ गई विश्व प्रसिद्ध बग्वाल
(Report - uttarakhandhindisamachar.com)
कुमाऊं - के चम्पावत जिला अंतर्गत माँ वाराही धाम देवीधुरा में भाई - बहन के अटूट प्रेम के रिश्तों का प्रतीक रक्षाबंधन धूमधाम से मनाया गया । यहाँ सदियों से चली आ रही पौराणिक बग्वाल का भव्य आयोजन हुआ । इस बग्वाल को देखने प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी पहुंचे । सुबह से माँ के धाम में श्रद्धालुओं का तांता उमड़ चुका था । सुबह से ही मंत्रोच्चार से मंदिर परिसर व मेला क्षेत्र गुंजायमान हो चुका था । जिसके बाद खोलीखांड दुबाचौड़ के पावन मैदान में एक के बाद एक खामों का आना शुरू हुआ । ढोल - नंगाड़ो की धुन , माँ वाराही के जयकारे और लगातार चल रहे मंत्रोच्चार ने पूरा क्षेत्र गुंजायमान हो उठा । थोड़ी देर बाद चारों खाम के सैंकड़ों लोग खोलीखांड दुबाचौड़ के मैदान में माँ वाराही के जयकारों के साथ पहुंच चुके थे । परिक्रमा चल ही रही थी औऱ तीन खामों ने परिक्रमा पूरी कर ली लेकिन चौथी खाम गहड़वाल खाम की परिक्रमा पूरी होने से पहले की बग्वाल शुरू कर दी गई । ये पहली मर्तबा हुआ कि जब बग्वाल में एक खाम के कुछ ही लोग शामिल रहे । बग्वाल में रणबांकुरों में उत्साह , विश्वास औऱ आस्था साफतौर पर देखी जा सकती थी । खोलीखांड के मैदान के चारों ओर फलों के बोरे भरे हुए थे । औऱ फिर वो घड़ी आ गई जिसका हजारों लोग घंटों से इंतजार कर रहे थे । खोलीखांड दुबाचौड़ के मैदान में फलों से बग्वाल शुरू हुई औऱ लोग एक दूसरे पर फल वर्षा करने लगे लेकिन बीच - बीच में तमाम पत्थर भी चले । यहाँ फलों के साथ पत्थर भी खूब बरसाए गए । लाउडस्पीकर से लगातार चल रहे मंत्रोच्चार और मैदान पर ढोल - नगाड़ों की धुन औऱ माँ वाराही के जयकारों के साथ ये पत्थर युद्ध करीब 10 मिनट तक चला , यानी लोग एक दूसरे पर करीब 10 मिनट तक फल और पत्थर मारते रहे । करीब 10 मिनट के बाद शंखनाद के साथ बग्वाल का समापन हुआ । पत्थर युध्द के बाद चारों खामों के बग्वाली वीरों ने एक दूसरे को गले लगाया औऱ बग्वाल समापन की बधाई दी । इस पत्थर युद्ध में दर्जनों की संख्या में रणबांकुरे चोटिल हुए हैं । बग्वाली वीरों के साथ - साथ कई दर्शक भी चोटिल हुए हैं । एक व्यक्ति के शरीर के बराबर रक्त बहता है बग्वाल में -
मान्यता है कि बग्वाल तब तक नहीं रुकती है जब तक इस पत्थर युद्ध में एक व्यक्ति के शरीर जितना रक्त न बह जाए । कुल मिलाकर कहा जाय तो बग्वाल में रणबांकुरे एक व्यक्ति के शरीर जितना रक्त यानी 5 - 6 लीटर खून खोलीखांड दुबाचौड़ के मैदान में माँ वाराही के गणों को प्रसन्न करने के लिए समर्पित करते हैं । करीब 60 हजार से अधिक लोग बने बग्वाल के साक्षी -
माँ वाराही धाम देवीधुरा की ख्याति इतनी है कि यहाँ पत्थर युद्ध को देखने पूरे भारतवर्ष से लोग पहुंचे हुए थे । माँ की महिमा , भक्तों की आस्था और यहाँ की पवित्रता की बदौलत एक अनुमान के मुताबिक करीब 60 हजार लोग बग्वाल के साक्षी बने । बाहरी राज्यों से आए श्रद्धालुओं ने देखा कि आंखिर सदियों से चली आ रही परंपरा का निर्वहन आज के आधुनिक युग में कैसे किया जाता है । बाहरी राज्यों से आए लोगों ने माना कि परमाणु युग में भी आज पत्थर युद्ध की न सिर्फ बात होती है बल्कि माँ के पावन प्रांगण में इसे हर्षोल्लास के साथ मनाया भी जाता है ।गहड़वाल खाम के लोग परिक्रमा करते रह गए और बग्वाल शुरू हो गई -
पहली मर्तबा ऐसा हुआ कि परिक्रमा पूरी नहीं हुई थी और बग्वाल शुरू हो गई । बग्वाल में गहड़वाल खाम परिक्रमा कर रही थी और फिर परिक्रमा के बाद उसे पत्थर युद्ध के दूसरे छोर पर पहुंचना था । लेकिन परिक्रमा करते पूरी होने से पहले ही बग्वाल शुरू हो जाना अब कई सवाल खड़े कर रहा है । आंखिर ये अव्यवस्था कैसे हुई और आंखिर कैसे खाम की परिक्रमा पूरी होने से पहले बग्वाल शुरू हुई , इस पर चिंतन करना बेहद आवश्यक हो गया है । जानिए क्या कहा बग्वाली वीरों ने -
बग्वाली वीरों ने इतिहास में पहली बार कहा कि , उन्होंने बग्वाल नहीं खेली । गहड़वाल खाम के लोगों ने नाराजगी जताते हुए अब कई सवाल उठाए हैं । लेकिन असल वजहों का पता लगाने की कोशिस हो रही है । बग्वाल चम्पावत जिले ही नहीं बल्कि समूचे उत्तराखंड की पहचान है । ये वो स्थान है जहाँ आने मात्र से ही आपको मन की शांति और तन की स्फूर्ति मिलती है । इस बार बग्वाल के दर्शन नहीं कर पाए तो -
आप अगले वर्ष रक्षाबंधन के दिन जरूर आइए और माँ वाराही के पावन खोलीखांड - दुबाचौड़ के मैदान में बग्वाल के दर्शन जरूर कीजिए ।