मान्यता : जानिए साठी महोत्सव की रोचक मान्यता , 9 व 10 सितंबर को आयोजित होगा साठी महोत्सव
(Report - uttarakhandhindisamachar.com)
रिपोर्ट - मुख्य कार्यालय
चम्पावत ( Champawat ) - जिले को मान्यताओं का जिला भी कहा जाता है क्योंकि यहाँ की मान्यताएं सबसे अलग औऱ सबसे अनूठी हैं । जिले के पाटी ( Pati ) विकासखंड अंतर्गत रमक गाँव के श्री शिव आदित्य मंदिर में सदियों की भांति इस बार भी सूर्य षष्ठी के अवसर पर 9 व 10 सितंबर को साठी महोत्सव का आयोजन होगा । भगवान सूर्य का यह मंदिर चंद राजाओं के शासन काल में स्थापित किया गया है । करीब सवा चार सौ साल पुराने इस मंदिर से जुड़ी एक कहानी काफी प्रचलित है ।मान्यताओं से भरा है ये मंदिर -
कहा जाता है 16 वीं शताब्दी में रमक औऱ आस - पास के इलाके में नकारात्मक शक्तियों का बोलबाला इतना बढ़ चुका था कि लोगों का जीना मुश्किल हो गया था । जीवन जीने के लिए किए जा रहे इतने संघर्षों को देखकर एक महिला अपने मायके लोहाघाट ( Lohaghat ) के बिसुंग के सुईं गांव गई । उस वक्त सुईं गांव में उस महिला के पिताजी पुजारी हुआ करते थे । महिला ने अपने पिता से कहा मैं कुछ मांगने आयी हूँ । इतना सुनते ही पिता बोले सब कुछ तो तुम्हारा है , जो चीज चाहिए उसे ले जाओ । तो उस महिला ने गांव की आपबीती बताते हुए भगवान सूर्य की मूर्ति की ओर इशारा किया औऱ कहा आज मैं भगवान को लेने आई हूँ । बचनबद्ध पिता ने मूर्ति ले जाने की सहमति दी औऱ कहा कि इस मूर्ति को बीच रास्ते में कहीं मत उतारना । महिला हामी भरते हुए मूर्ति को लेकर तो आई लेकिन आधा रास्ता तय करने के बाद मूर्ति को पाटी ( Pati ) विकासखंड के कूंण औऱ मैरोली गांव के बीच मानादेवी ( Manadevi ) नामक स्थान पर कुछ परिस्थितियों के कारण जमीन पर उतरना पड़ा । जिसके बाद तमाम प्रयास करने पर भी उस महिला द्वारा मूर्ति नहीं उठाई गई । मूर्ति को उठाने में असमर्थ महिला ने जोर - जोर से आवाज लगाकर मदद की गुहार लगाई । आवाज सुनकर रीठासाहिब ( Reethasahib ) के बोहरा ( Bohra ) लोग औऱ लड़ा - रौलमेल ( Lara / Roulmel ) के लडवाल ( Ladwal ) लोग पहुँच गए । बोहरा औऱ लडवाल लोगों के प्रयासों के बाद सूर्य मूर्ति को रमक पहुंचाया गया । माना जाता है मूर्ति रमक पहुंचते ही नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव खत्म हुआ औऱ बोहरा , लडवाल औऱ रमक के लोगों द्वारा च्यूड़ा ( धान को भिगाने के बाद भूना जाता है फिर उन गर्म धान को कूटा जाता है , जिसमें तिल , नारियल , भुने हुए भट्ट , भुनी मूंगफली , भंगीरा औऱ भुने भांग के दाने मिलाकर बनाया गया सुगंधित व पौष्टिक खाद्य पदार्थ ) का प्रसाद वितरित किया गया औऱ एक दूसरे पर फेंककर खुशी व्यक्त की गई थी । जिसके बाद हर वर्ष यहाँ इस परंपरा का निर्वहन किया जाने लगा ।जानिए क्या है वर्तमान स्थिति -
वर्तमान में इस परंपरा का निर्वहन नहीं किया जाता है । यहाँ अब न च्यूडे का प्रसाद बंटता है औऱ ना ही च्यूडे की बग्वाल खेली जाती है । संस्कृति से जुड़ना बेहद आवश्यक है -
हमारी संस्कृति , परंपरा औऱ मान्यताओं के संरक्षण के लिए हमें अपनी जड़ों से जुड़े रहने की आवश्यकता है । औऱ इस परंपरा को एक बार फिर जीवंत करने के लिए श्री शिव आदित्य मंदिर रमक में प्रसाद के रूप में च्यूडे का वितरण करना पुनः अपनी जड़ों की ओर लौटने से कम नहीं होगा ।